भाषा
भावनाओं एवं विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम है । जाति , राष्ट्र , स्थान
तथा काल के विभेदों के साथ – साथ विभिन्न भाषाओं का जन्म
, विकास तथा परिवर्तन होना स्वाभाविक हैं । इस निसर्गसिद्ध तथ्य के
कारण ही सारे विश्व में अनेक प्रकार की भाषायें पाई जाती हैं । भारत देश का सौभाग्य
है कि यहॉं कई भाषायें न सिर्फ़ बोली जाती है बल्कि , उनका अपना पूर्ण विकसित व्याकरण , साहित्य और इतिहास भी हैं ।
हिन्दी के अलावा संस्कृत , तेलुगु , तमिल , कन्नड , मलयालम , उडिया , बंगला , गुजराती , मराठी ,पंजाबी , असमिया आदि महत्वपूर्ण भाषायें अपने
- अपने साहित्य सौरभ द्वारा इस देश के सांस्कृतिक एवं साहित्यिक वातावरण को मधुर
बनाए हुए हैं । इन संपन्न भाषाओं के मध्य
एक व्यवहार की सरलता दोनों के लिए अत्यंत
आवश्यक हैं ।
हिन्दी हमारे देश की राष्ट्रभाषा , राजभाषा एवं संपर्क भाषा
हैं । हमने बहुत से
संस्थानों के लिफ़ाफों पर छपा देखा होगा कि
हिन्दी दुनिया की तीसरी बडी भाषा हैं जबकि हकीकत यह है कि अंग्रेजी के बाद हिन्दी ही
विश्व की दूसरे स्थान पर सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है । चीनी भाषा को दूसरे स्थान पर
माना गया है पर शुद्ध चीनी भाषा जानने वालों की संख्या हिन्दी जानने वालों से काफ़ी
कम हैं । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विदेशों में हिन्दी भाषा सीखने और जानने वालों की संख्या में
गुणात्मक , अधिकांशतः वृद्धि हो रही
हैं । विश्व के लगभग 193 विश्वविधालयों में हिन्दी
पढाई जाती हैं । सूरीनाम ,
फीजी , मारिशस ,
यू0 के0 , संयुक्त अरब अमीरात , श्रीलंका , नेपाल , बंग्लादेश , यु0 एस0 ए0 आदि ऐसे अनेक देश है जहॉं के लोग हिन्दी अधिकांशतः रूप
में हिन्दी बोलते , समझते , व्यवहार करते हैं । विधालय से लेकर विश्वविधालय स्तर
तक के शिक्षा में हिन्दी को शामिल करना
“ हिन्दी ” भाषा की लोकप्रियता , बहुमूल्यता का प्रमाण एवं
प्रतीक हैं । अनेक पत्रिकाओं का प्रकाशन , सभा - सम्मेलन का आयोजन तथा विश्व
हिन्दी सम्मेलन का आयोजन “
हिन्दी ” के वर्चस्व एवं वैज्ञानिकता का प्रमाण है ।
हमें ज्ञात हैं कि आज वैश्विक स्तर पर 10
जनवरी को विश्व हिन्दी दिवस मनाने का
प्रावधान भी शामिल हो गया हैं ।
फ़ोटो प्रति में राजभाषा अधिकारी अपने विचारों को केंद्रित एवं आयोजन को
संबोधित करते हुए ।
साथ में विशेष अतिथि के रूप में आये हिन्दी विशेषज्ञ / शिक्षक श्री सरोज कुमार दास मंचासीन है । साथ में मुख्य अतिथि के रूप मंचासीन फ़ैजुर रहमान चौधरी एवं मुख्य प्रबंधक ( वसूली विभाग ) मंजीत सिंह भी मंचासीन हैं ।
एक तरफ हम “ हिन्दी ” के वैश्विक स्तर को देख सकते हैं तो दूसरी तरफ
अपने देश भारत में “ हिन्दी ” की अनिवार्यता , प्रभावशीलता तथा पूर्णता को भी महसूस कर सकते
हैं। हमारे देश में “ हिन्दी ” आज एकता , भाईचारा , की मिशाल बन चुकी है । एक स्वतंत्र राष्ट्र के
लिए एक स्वतंत्र भाषा का होना अनिवार्य हैं क्योंकि स्वतंत्र भाषा के बिना कोई भी
स्वतंत्र राष्ट्र अपने में पूर्ण नहीं माना जाता । जो भाषा सारे देश के लिए मान्य
हो उसे ही राष्ट्रभाषा की संज्ञा दी जा सकती हैं । प्रत्येक भाषा इस आसन प्राप्त
करने की क्षमता नहीं रख सकती क्योंकि यह भाषा के वैज्ञानिकता , संप्रेषणक्षमता एवं व्यक्तिविशेष के उपयोग पर
निर्भर हैं । किसी देश की राष्ट्रभाषा वही हो सकती हैं जिसका उदगम उसी देश में हो , जो विदेशों से न लाई गई हो , जिसका उस देश की संस्कृति – सभ्यता और साहित्य से गहरा संबंध हो , जो बोलने - समझने में सरल सुबोध एवं सार्थक हो । जो व्यक्ति के विचारों को पूर्णतः व्यक्त
करने की क्षमता रखती हो । संप्रेषणक्षमता , भाषा की वैज्ञानिकता पर पूर्ण हो तथा जिसको बोलने
- समझने , सीखने वालों की संख्या सर्वाधिक हो , देश की सभ्यता
संस्कृति को लेकर साहित्य लिखे गये हो जो भाषा देश की अधिकांशतः भाषाओं का
प्रतिनिधित्व करती हो ( संपर्क भाषा के रूप मे , राजभाषा के रूप में , लोक भाषा के रूप में ) उसे ही हम राष्ट्रभाषा कह
सकते हैं । हमें इस बात का गर्व हैं कि हमारे देश की राष्ट्रभाषा के रूप में विराजमान
हैं । अपने देश की सरकारी भाषा के रूप में भी विराजमान हैं । हिन्दी हमारे देश के
लिए एकता , अखण्डता का आधार भी हैं । कई
भाषाओं के शब्दों को अपने में शामिल करके “ हिन्दी ” भारतीयों के भावनाओं , विचारों को प्रकट करने में पूर्णतः सक्षम हैं । “ हिन्दी ” हम सभी देशवासियों के लिए एकता , भाईचारे का आधार भी हैं । हमें गर्व हैं कि “ हिन्दी ” आज एक वैश्विक पहचान बना रही हैं । भारतीय
लोकतंत्र की सामाजिक , आर्थिक और प्रौधोगिकी तरक्की में साधारण जनता की
अधिक से अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने तथा शासन को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने
में “ हिन्दी ” की अहम भूमिका हैं । हमें आवश्यकता हैं अपनी भाषा
के महत्व , गरीमा समझने
की । “ गुरूदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ” ने “ हिन्दी ” के महत्व को संकेत करते हुए कहा था कि “ हम चाहते है , सारी प्रांतीय बोलियॉं , जिनमें सुंदर साहित्य की सृष्टि हुई है , अपने
अपने घर में ( प्रांत में ) रानी बनकर रहे और आधुनिक भाषाओं के हार की मध्यमणि हिन्दी भारत
भारती होकर विराजती रहे । ”
पुरूस्कृत स्टाफ सदस्यों की सूची :
प्रवीण परीक्षा अनुक्रमांक प्रतिशत % प्रोत्साहन एस.पी.एफ शाखा का नाम
में
उत्तीर्ण कार्मिक
मानदेय राशि संख्या
1) विपुराम चारह 20372 58.66 7500/-रू0 29859
बरूआ
बामुन गॉंव
2) डेईजी कलिता 20373 64.33 7500/-रू0 16101 बरूआ बामुन गॉंव
3) हेमकांत गोगोई 20374 57.66 7500/-रू0 29180 नाजिरा
प्राज्ञ परीक्षा अनुक्रमांक प्रतिशत % प्रोत्साहन एस.पी.एफ शाखा का नाम
में
उत्तीर्ण कार्मिक
मानदेय राशि संख्या
4)
भूपेन बरूआ
20265 70.33 12,000/- रू0 26505 नाजिरा
5) अभिजीत तालुकदार 20266 68.33 9000/- रू0 33245 डेरगॉंव
6) श्यामकानु कौशिक 20267 69.33 9000/- रू0 33632 कमरबंध
7) रिंकुमणि दास 20268 69.33 9000/- रू0 29912 बरूआ बामुन गॉंव
8) पोलेन सरकार 20269 62/- 9000/- रू0 29702 बनग़ॉंव
9) दीपक बरदोलोई 20270 65/- 9000/- रू0 29801 काकोजान
10) ध्रूवज्योति दास 20271 61.33 9000/- रू0 33863 काकोजान
11) पल्लवीका दास 20272 67.67 9000/- रू0 32392 जोरहाट
12) पद्मा ज्योति काकति 20273 58/- 9000/- रू0 26834 शिबसागर क्षेत्रीय कार्यालय
13) देवजीत खातनियार
20274 72/- 12000/- रू0 32168 शिबसागर क्षेत्रीय कार्यालय
नोट :- क) सभी कार्मिकों को नियमानुसार सामान्य मानदेय का
डेढ गुना राशि दिया
जायेगा । क्योंकि सभी ने प्राइवेट स्तर पर
प्रवीण / प्राज्ञ परीक्षा उत्तीर्ण किया
हैं । जिसकी सूचना मई 2011 प्रवेश पत्र के माध्यम से मिली हैं ।
ख)
हिन्दी शिक्षण योजना की विभिन्न हिन्दी परीक्षाएं निजी
प्रयासों से तथा विशेष योग्यता, अथार्त 70 % या उससे अधिक अंकों
के साथ पास करने वाले कर्मचारियों को , जिसके लिए बैंकों में
प्रोत्साहन योजना प्रचलित हैं , सामान्य मानदेय का दुगुना मानदेय
दिया जाये । इसीलिए नियमानुसार दो
कार्मिकों (भूपेन बरूआ ,
देवजीत खातनियार) यह राशि प्राप्त
करने के काबिल हैं ।
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